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तिल बिना ताड़, बिना राई के पहाड़!

कुछ बथान से...
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तिल का ताड़ या राई का पहाड़ बनाना तो आप सब ने सुना ही होगा। संसद के मौजूदा सत्र के दौरान जिस तरह से कांग्रेस ने राहुल गाँधी की सुरक्षा व्यव्यस्था की समीक्षा को जासूसी का रंग दिया है उसे आप कह सकते है “तिल बिना ताड़, बिना राई के पहाड़”। ऐसा कर के कांग्रेस ने अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया है। इस बेवज़ह बेमतलब मुद्दे पर कांग्रेस के आलावा समाजवादी पार्टी, जदयू व अन्य विपक्षी दलों ने भी सदन में हंगामा कर अपना बखूबी योगदान दिया। दिल्ली पुलिस के स्पष्टीकरण के बाद कांग्रेसी नेताओं (गांधी परिवार के चाटुकारों) को संसद में हंगामा करने के बजाय अपने चापलूसी भरे बयानों के लिए माफ़ी मांगना चाहिए था। संसद सत्र के दौरान अव्वल तो राहुल गांधी सदन में मौजूद रहने के बजाय अज्ञातवास में चले गए है। कांग्रेस के चाटुकारों को यह बताना चाहिए की ऐसे समय में जब एक सांसद का सबसे जरुरी काम सदन में रहना होता है तब राहुल गांधी कहाँ है? यह पहला मौका नहीं है जब नई सरकार के आने के बाद विपक्ष ने किसी गंभीर विषय के बजाय साधारण से साधरणतर विषयों को विवाद का मुद्दा बना कर सदन की कार्यवाही में विघ्न डाला है। हम सब जानते है की सदन का एक एक मिनट कितना कीमती है, न सिर्फ धन हानि की दृष्टि से बल्कि राष्ट्र और जनसरोकार की बेहतरी के लिए भी। सदन के सदस्यों से यह अपेक्षा रहती है की वे सदन के समय का भरपूर सदुपयोग राष्ट्र की बेहतरी के लिए करें। ख़ास कर उपरी सदन के सदस्यों से ये अपेक्षा ज्यादा रहती है क्योकि आम जन के समझ में वहाँ समाज के विभिन्न वर्गों पेशे से आये शालीन बुद्धिजीवियों का समूह बैठता है। दुर्भाग्य से आज ऊपरी सदन में विपक्ष सदन का उपयोग सिर्फ संख्या बल के भौंडे प्रदर्शन के लिए कर रहा है। बात बात पर प्रधानमंत्री से स्पष्टीकरण और विरोध के बहाने सदन का समय नष्ट करने के अतिरिक्त विपक्ष के पास कोई काम नहीं रह गया है। अगर मौजूदा क्रिकेट विश्वकप में भारत ख़िताब नहीं जीतता है तो विपक्ष इसके लिए भी प्रधानमंत्री से स्पष्टीकरण मांग दे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। आज लोकसभा में विपक्ष अल्पमत में है और राज्यसभा में बहुमत में, यह स्पष्ट है की लोकसभा में जो बहुमत में है उसे ही जनता ने शाशन करने की जिम्मेदारी दी है और वही जतना के प्रति जवाबदेह है। किन्तु विपक्ष राज्यसभा में अपने संख्या बल के जरिये शाशन करना चाहता है। विपक्ष जनता को यह भी बताना चाहता है की उसने दशकों बाद लोकसभा में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत दे कर भरी गलती कर दी है। करीब करीब सभी छोटे बड़े विधेयकों पर कांग्रेस ने जिस तरह से अडंगा लगाया उससे कांग्रेस की नाकामियों का ही पता चलता है। पिछली सरकार के साठ महीनों के कार्यकाल में चार और पिछले आठ माह में पांच विधेयक प्रवर समिति के पास जाने से विपक्षी दलों की मंशा का पता चलता है। यह स्थिति बेहद शर्मनाक और चिंतनीय है। सरकार ने गैर जरुरी शालीनता का परिचय देते हुए जिस तरह विपक्ष के गैर वाज़िब सवालों के जवाब दिए है उसे मिडिया में भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी से खार खाए बैठे तथाकथित बुद्धिजीवीयों और पत्रकारों के समूह ने इसे सरकार की किरकिरी के तौर पर प्रसारित प्रचारित किया है। जिस तरह से कांग्रेस सहित विपक्ष ने सदन का कीमती समय बर्बाद करने की ठान रक्खी है उससे एक ही चीज़ स्पष्ट होती है, विपक्ष ना सिर्फ अपने जवाबदेही से भाग रही है अपितु जानबूझ कर राष्ट्र का नुकसान कर रही है। येन केन प्रकारेण सरकार की तथाकथित किरकिरी ही विपक्ष के एकमात्र हर्ष का विषय है। आज विपक्ष को यह भली प्रकार से समझ लेना चाहिए की जनता सब समझ रही है और उसकी दिलचस्पी राहुल गांधी के जूतों के माप और बालों के रंग में नहीं है, इसमें राहुल गांधी के चाटुकारों की दिलचस्पी भले ही हो। जनता की दिलचस्पी ये जानने में है की उसके और राष्ट्र के भले के लिए क्या हो रहा है। कांग्रेस सहित विपक्ष ऐसे ही राह चलती रही तो वो दिन दूर नहीं जब जनता उसे राज्य सभा में बैठने लायक भी नहीं छोड़ेगी।

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