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चीन के शिनजिआंग प्रांत में इमामों से जबरन डांस कराया गया, क्यूंकि चीन की सरकार नहीं चाहती की इमाम इस्लाम का प्रचार-प्रसार करें। इसके प्रतिक्रिया स्वरूप पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में प्रदर्शनकारी भीड़ ने सरेआम छह हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया। प्रदर्शनकारी मोहम्मद अकरम ने कहा कि चीन में ऐसा होता आया है, लेकिन हम वहां प्रदर्शन नहीं कर सकते इसलिए हमने हिन्दुओं की हत्या की है जिससे दुनिया में संदेश जाए कि हम इस्लाम का विरोध बर्दाश्त नहीं करेंगे।
दुनिया का सबसे ताकतवर माने जाने वाला आतंकवादी संगठन ISIS ने हाल के दिनों में कई सारे अमेरिकी/ब्रिटिश पत्रकारों की बंधक बनाकर हत्याएं की और उनका वीडियो जारी किया, हर वीडियो में एक बात समान रूप से देखने को मिली, बंधक को मारे जाने से पहले केसरिया कुर्ते पहनाये गए फिर उनकी दर्दनाक और बर्बरता पूर्वक हत्या की गई।
आख़िरकार ऐसा कर के ISIS के आतंकवादी क्या सन्देश देना चाहते थे, ये सर्वविदित है की केसरिया रंग हिंदुत्व का प्रतिक है। अमेरिका और ब्रिटेन से प्रतिशोध लेने के लिए हिंदुत्व के प्रतिक चुनने की जरुरत क्यों पड़ी। ऐसा क्यों होता है की म्यांमार में मुसलमानों पर हमला होता है और उसकी प्रतिक्रिया में बांग्लादेश में हिन्दुओं की हत्या होती है, हिंदुस्तान के गया में बम विस्फोट होता है। ऐसा क्यों होता है जब दुनिया में कही भी इस्लाम के खिलाफ कुछ भी होता है बदले में हिन्दुओं को उसकी कीमत चुकानी पड़ती है।
इतिहास गवाह है हिंदुस्तान ने कभी भी किसी इस्लामिक देश पर हमला नहीं किया, सदियों से हिंदुस्तान ने और यहाँ रहने वाले हिन्दुओं ने इस्लामिक आक्रांताओ का आक्रमण झेला और उनकी बर्बरता का शिकार हुए। इस्लामिक आक्रांताओ की विनाशलीला में कितने हिन्दू राष्ट्र समाप्त हो गए। सदियाँ बीती लेकिन परिस्थितियां नहीं बदली। पूरी दुनिया के इस्लामीकरण की लिप्सा की पूर्ति ने अपनी विनाशलीला आज भी जारी रक्खी है।
किन्तु प्रश्न अभी भी यथावत है, इस्लामीकरण का निशाना सिर्फ हिन्दू क्यों? स्पष्ट है की हिन्दू हमेशा से दमन का सबसे आसान लक्ष्य रहा है। आज हिन्दू पूरी दुनिया में अत्याचार का प्रतिकार नहीं करने के लिए कुख्यात हो चूका है। आप चीन में प्रदर्शन नहीं कर सकते इसलिए हिन्दुओं की हत्या कर देना यह दर्शाने के लिए काफी है की इस्लामिक मानसिकता किस कदर इस सोच से प्रभावित हो चुकी है की आप जब चाहें किसी हिन्दू के साथ जो चाहे कर सकते है। हिन्दुओं का सशक्त प्रतिकार तो दूर हिन्दुओं ने कभी वैचारिक प्रतिकार करने की आवश्यकता नहीं समझी। आज एक छोटी सी घटना होने पर टीवी पर चस्पां बुद्धिजीवी चेहरे करतल ध्वनि से रुदन प्रलाप करने लगते है, लेकिन यही बुद्धिजीवी सिंध में घटी घटना पर मौन साध कर अदृश्य हो जाते हैं।
आखिर कब तक हिन्दू मौन साध कर अत्याचार सहे जाने के लिए अभिशप्त रहेंगे। क्यों हिन्दू इतना कायर हो गया है की वो इस तरह के अत्याचार देखने के बाद भी वैचारिक प्रतिरोध का साहस भी नहीं जुटा पा रहा। यह परिस्थिति सोचनीय है।
-अंजन कुमार
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