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धर्मनिरपेक्षता का पाखण्ड

कुछ बथान से...
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मित्रों, हम सभी भारतवासी आज तमाम तरह की मुश्किलों के दौर से गुजर रहे है, आर्थिक, सामाजिक, सामरिक, मानव संसाधन, रोजगार, भ्रष्टाचार, मंहगाई हर बिषय पर हम हर दिन पिछड़ते जा रहे है और सबसे बड़ी बात इस सबके पीछे की वजह जो मैं समझता हूँ घोर राजनैतिक सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है।

अभी हमारे देश में सिर्फ एक ही तरह की बहस चल रही है और एक ही शब्द है जो हर बहस की मूल भावना तय कर रही है, और वो है “धर्मनिरपेक्षता”। मैं ऐसा महसूस कर रहा हूँ की सभी समस्याओं के इर्द-गिर्द अगर कुछ है तो वो है साम्प्रदायिकता और हर समस्या का समाधान है “धर्मनिरपेक्षता”। मैं किसी धर्म विशेष के नेता का समर्थन किये बगैर इस बात को समझने की कोशिश करता हूँ की जब एक धर्म विशेष के किसी धार्मिक आयोजन पर सामाजिक सद्भाव सौहार्द में किसी तरह का खलल नहीं पड़ता फिर एक दुसरे धर्म विशेष के धार्मिक आयोजन से कैसे सामाजिक सद्भाव सौहार्द ख़राब हो जाता है, अभी तक मुझे इसका जवाब नहीं मिला है। हर रोज टीवी पर बहसों के कई दौर चलते हैं, और इन सभी बहसों की पूर्णाहुति “धर्मनिरपेक्षता” के नाम पर खत्म हो जाती है, हद तो तब हो जाता है जब बहस आर्थिक, बेरोजगारी, शिक्षा, मंहगाई या अन्य किसी मुद्दे पर चल रहा होता है (जिसका होना दुर्लभतम की श्रेणी में आता है क्यूंकि टीवी पर बहस के लिए ऐसे मुद्दे बेमतलब समझे जाते है) और उस बहस में भी मोदी का साम्प्रदायिकता आ जाता है। अजीब अजीब तर्क गढ़े जा रहे है, देश में भ्रष्टाचार चरम पर है – मोदी सांप्रदायिक है हमें उन्हें हराना होगा, देश की आर्थिक हालत बहुत ख़राब है – मोदी सांप्रदायिक है हमें उन्हें हराना होगा, युवाओं को न अच्छी शिक्षा है न रोजगार – मोदी सांप्रदायिक है हमें उन्हें हराना होगा, सीमा पर घुसपैठ, सीमा का अतिक्रमण हो रहा है – मोदी युद्ध प्रेमी है हमें उन्हें हराना होगा। किसी भी मुद्दे की तुलना के लिए मोदी पैमाना बन गए है, मोदी सांप्रदायिक बन गए है। हर नाकामी की वजह और पैमाना मोदी की साम्प्रदायिकता है और इस माहौल मै मुझे लगता है की “धर्मनिरपेक्षता” से बड़ा कोई पाखंड नहीं है। “धर्मनिरपेक्षता” नाम के पाखंड ने हमारे देश को आज सामाजिक रूप से इस कदर बाँट दिया है की दूर दूर तक एकता का कोई सूत्र नज़र नहीं आ रहा है।ऐसे मैं सिर्फ एक ही चीज़ है जिससे बहुत कुछ बेहतर हो सकता है और वो है शिक्षा और रोजगार के बेहतर माहौल। जिसे करने में हमारी वर्तमान सरकार पूरी तरह से विफल रही है।

कांग्रेसनित संप्रग की घोर राष्ट्र विरोधी और भ्रष्ट नीतियों ने ना सिर्फ मंहगाई, बेरोजगारी, सामाजिक असंतुलन पैदा किये है बल्कि एक घोर निराशा का माहौल व्याप्त हो गया है, ऐसा लग रहा है की अब कुछ ठीक नहीं हो सकता। सोशल मीडिया का जो मोदीफायिंग हुआ है वस्तुतः आज के माहौल में व्याप्त निराशा की प्रतिक्रिया है, परिणाम है। मैं ये बिलकुल भी नहीं समझता की मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने से देश की सभी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जाएँगी जैसा की सोशल मीडिया पर प्रचार किया जा रहा है, परन्तु गुजरात ने पिछले 10 वर्षों में जो राह देश को दिखाई है, जहाँ सभी धर्म के लोग एक साथ विकास और एक बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर हैं, उसे देखते हुए मुझे ये स्वीकार करने में कतई संकोच नहीं है की तमाम राजनैतिक, सामाजिक और बुद्धिजीवी वर्ग के तथाकथित “धर्मनिरपेक्षता” से मोदी की साम्प्रदायिकता का मैं समर्थन करता हूँ। मैं मोदी को प्रधानमंत्री बनते देखना और देश को गुजरात जैसा विकसित होते देखना चाहता हूँ। दुनिया का इतिहास गवाह है की वक़्त वक़्त पर कुछ व्यक्ति विशेष पैदा हुए और उन्होंने दुनिया का इतिहास बदला, इतिहास रचा। कहते है की उम्मीद पर दुनिया कायम है, दिसंबर की थरथराती ठण्ड में पानी की बौछार के बीच हजारों की तादाद में लोग एक जघन्य अपराध के खिलाफ जब अपना विरोध दर्ज करते हैं तो एक उम्मीद जगती है की हम जाग रहे है एक बेहतर कल के लिए, हम आवाज उठा रहे है, सवाल कर रहे है और अपने आने वाले कल के लिए बेहतर सोच रहे हैं। साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की तथाकथित व्याख्या से परे जा कर हम एक बेहतर भारत की कल्पना करते है।

-अंजन कुमार

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