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मैं सेक्युलर क्यूँ नहीं हूँ?

कुछ बथान से...
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मित्रों, इन दिनों मैं बहुत व्यथित हूँ, मेरे कुछ सेक्युलर मित्रों को मेरे सेक्युलर नहीं होने पर एतराज़ है। आज जब चारो तरफ सेकुलरिज्म का जाप हो रहा है और सभी तथाकथित सेक्युलर बनने की होड़ लगाये हुए है, ऐसे में जब मैं  कहता हूँ की मैं सेक्युलर नहीं हूँ तो मुझसे बहुत से प्रश्न किये जाते हैं। अब प्रश्न ये है की मैं सेक्युलर क्यूँ नहीं हूँ? अनायास ही मुझे अपने बचपन के दिन याद आ रहे हैं, बचपन मैं मुझे दूध पीने से सख्त नफ़रत थी(आम तौर पे सभी बच्चों को होती है)… जब मैं दूध नहीं पीता था तो माँ मुझे बोलती थी की दूध पी लो नहीं तो “धरकोसवा” आ जायेगा और तुम्हे पकड़ ले जायेगा, मैं डर के दूध पी लेता था। मैंने कभी “धरकोसवा” को देखा नहीं … लेकिन उसका डर दिखता था … जैसे जैसे मैं बड़ा हुआ, पता चला की “धरकोसवा” नाम का कोई चीज़ होता ही नहीं है।

आज हमारे देश को आजाद हुए 65 साल से ज्यादा हो गए। जब देश आज़ाद हुआ तब गरीबी मुक्त भारत के निर्माण के सपने के साथ हमारे देश का संविधान बना। समय बिताता रहा और साल दर साल गरीबी मुक्त भारत के लिए नारे गढ़े जाते रहे। आज देश में चारो तरफ लुट, भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक अस्थिरता, अशिक्षा, स्वास्थ्य, भूख, कुपोषण हर मोर्चे पर देश विफल है। सीमाओं पर रोज अतिक्रमण हो रहा है हमारे जवान मर रहे हैं। आज देश मैं एक भी ऐसा अवसर नहीं आ रहा है जिससे मन को ख़ुशी मिले।

गरीबी हटाओ नारे के साथ जिस कांग्रेस ने लगभग 60 साल से हमारे देश पे शाशन किया, हमारी आकाँक्षाओं को पूरा करना तो दूर आज भी गरीबी हटाओ के नारे के साथ हमारे सामने विद्यमान है।  हालत ये है की एक राज्य में एक दुसरे को फूटी आँख नहीं सुहाने वाले राजनितिक दल केंद्र में सिर्फ सेकुलरिज्म के नाम पर एक हो जाते है और उसी कांग्रेस के साथ खड़े हो जाते है जिसको अपने राज्ये में सुबह शाम गरियाते हैं। वे सभी दल ये मानते है की कांग्रेस की नीतियाँ राष्ट्रविरोधी हैं फिर भी सेकुलरिज्म के नाम पर उन्हें राष्ट्रविरोधी नीतियों पर चलने में कोई परेशानी नहीं है। सवाल ये है की क्या सेकुलरिज्म का जाप करने वाले दल भी उतने ही जिम्मेदार नहीं है जितनी की कांग्रेस?  हर तरफ लुट और नाकामी का माहौल बनाने के बाद जब हमारे सामने वोट मांगने आने के लिए कोई मुद्दा नहीं होता तो ये कहते है की हम सेक्युलर हैं जी हमें वोट दो। हमें वोट दो नहीं तो “धरकोसवा” आ जायेगा।

आज़ादी के बाद से लगातार बनाने वाली तमाम सेक्युलर पार्टियों ने हमें “धरकोसवा” का डर दिखाया। हम इस देश की भोली भाली जनता “धरकोसवा” के डर से उन्हें वोट दे कर सत्ता और अपने भविष्य की बागडोर उनके हाथों में देते रहे। आज जब मैं ये सोचता हूँ की मुझे इस “धरकोसवा” रूपी डर से क्या मिला तो सिर्फ हताशा और निराशा ही नज़र आता है।

आज मैं हताश, निराश और बेहद व्यथित हूँ।

इस हताशा और निराशा के दौर मैं जब देखता हूँ तो मुझे सारी परेशानियों की एक ही वजह नज़र आती है – “सेकुलरिज्म”। “सेकुलरिज्म” के बहाने मुझे जिस “धरकोसवा” से डराया गया है आज उसी “धरकोसवा” रूपी डर से एक राह नज़र आती है एक बेहतर भविष्य की उम्मीद नज़र आती है। एक राह, की मुझे इस डर से पार पाना होगा … निर्भीक, निडर होकर मुझे अपना और अपने आने वाले भविष्य के लिए डर से आगे बढ़ कर कुछ करना होगा। मुझे सेकुलरिज्म से निजात पाना होगा।

तत्कालीन सन्दर्भ में मैं बहुत ही विश्वास के साथ ये समझता हूँ की सेक्युलर शब्द का किसी भी तरह धर्म से कोई लेना देना है।  इसलिए मैं स्वयं को “सेक्युलर” शब्द से मुक्त करता हूँ, “धरकोसवा” के डर से मुक्त करता हूँ।

मैं आप सभी मित्रों से इमानदार प्रतिक्रिया की अपेक्षा एवं अनुरोध करता हूँ।

-अंजन कुमार

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