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मैंने एक लेख पढ़ा जिसमे हमारे प्रधानमंत्री को इमानदार कहा गया है, एक ऐसा इमानदार जिसे इस देश मैं हो रहे भरष्टाचार के बारे मैं कुछ भी नहीं पता. तरस आता है मुझे ऐसे प्रधानमंत्री पे और ऐसा सोचने वालों पे. मैं इस बात से बिलकुल भी इत्तेफाक नहीं रखता हूँ की श्री मनमोहन सिंह इमानदार है, और उन्हें कुछ पता ही नहीं होता जैसे छोटा बच्चा ग्लास तोड़ देता है और पूछने पर कहता है मुझे नहीं पता. सबसे पहले तो कांग्रेस की हमेशा से यही नीति रही है की चाहे जैसे भी हो सत्ता मैं बने रहो… इसके लिए जो कुछ भी करना पड़े करो… विपक्ष को कभी भी मजबूत मत होने दो. भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा रामदेव ने जो आन्दोलन किया और उसपर सरकार का रवैया जिस तरह का था, पहले मनाने का प्रयास, फिर समझोते का प्रयास और फिर दमनात्मक करवाई और सरकारी बल प्रयोग. इन सबने सरकार का रहा सहा विश्वास भी खत्म कर दिया. सवाल ये है की जहाँ एक तरफ विपक्ष की विश्वसनीयता जनता मैं घटी है और जिस रह पे सत्ता चल रही है, ऐसे में अगर कोई हमारे सरकारी और सामाजिक भरष्टाचार को मिटने का प्रयास करता है तो मुझे इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती जिस प्रक्रिया में जनता की स्पष्ट भागीदारी हो. सरकार से किसी भी तरह की उम्मीद करना मैं बिलकुल निरर्थक समझता हूँ, अब वक्त आ गया है जब हम सबसे पहले अपने स्तर से भरष्टाचार मिटायें और देश को एक नई दिशा दें क्यूंकि जो भी बदलाव होना है या होगा उससे न सिर्फ हमारे बल्कि आने वाली पीढ़ियों की भी दिशा तय होगी.
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